दिसंबर माह के प्रारंभ होते ही दुनियाभर में क्रिसमस पर्व की आहट होने लगती है। इस पर्व का उल्लास केवल 25 दिसंबर तक ही नहीं रहता, इसके साथ-साथ नव वर्ष की दस्तक भी माहौल को और खुशनुमा था उम्मीदों से भरा बना देती है। क्रिसमस न केवल संसार भर के मसीहियों के लिए अपितु सभी धर्म, भाषा व संस्कृति के लोगों के लिए भी उल्लास व हर्ष का त्योहार है। क्रिसमस पर्व के प्रति सांताक्लाज, क्रिसमस ट्री क्रिसमस तारे, क्रिसमस चरनी हर जगह लोगों को अनायास ही आकर्षित करते है। हर वर्ग के लोग एक-दूसरे को प्रभु ईसा मसीह के जन्म की शुभकामनाएं अर्पित करते हुए आपसी मतभेदों को भूल जाते हैं।
दुनिया भर में कोविड-19 से अब तक 15 लाख से भी अधिक लोग मृत्यु का शिकार हुए है। दुनियाभर में शिक्षा, व्यवसाय, उत्पाद, कृषि, पर्यटन, उद्योग, रोजगार हर क्षेत्र न केवल प्रभावित हुआ है और सत्य यह भी है कि जहां एक ओर हजारों प्रवासी मजदूर, असंगठित बेरोजगार, दैनिक रोजगार कर्मी, कृषि कार्य से जुड़े लोग दो जून की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो दूसरी ओर छोटे-बड़े व्यापारी व कारपोरेट दुनिया की हस्तियां अपने घटते लाभ व कम होती पूंंजी की चिंता में हैं। ऐसी विश्वव्यापी महामारी के काल में हम सबके मन में त्योहारों या पर्वो की खुशी मनाने का उल्लास और इच्छाशक्ति भी क्षीण होती दिख रही है। ऐसे में कोविड-19 के परिपेक्ष्य में क्रिसमस पर्व का उल्लास व समारोह के आयोजन भी थमे हैं।
कोविड-19 से बचाव के लिए जरूरी उपाय अपनाने के कारण क्रिसमस पर पहले की तरह अब धूम-धड़ाम की लाइफ स्टाइल की पांबदी है, जहां चाहे, जब चाहे, घूम फिर नहीं सकते हैं। मॉल, सिनेमा हॉल, होटल, रेस्तरां आदि बंद हैं। ऐसे में, कुछ ही गिने चुने लोग रात के अंधेरे में चमकते तारे के समान जरूरतमंदों की सहायता के लिए आगे बढ़ रहे हैं।
ईसा मसीह के जन्म की कहानी इन परिस्थितियों से मिलती-जुलती है। उस समय के राजा अगस्तस की राजाज्ञा के कारण प्रवासी शरणार्थियों के समान उनके माता-पिता युसुफ और गर्भावस्था में मरियम को 150 किलोमीटर की दूरी पैदल या गधे पर यात्रा करके पूरी करनी पड़ी। बेथलेहम के सरायों में उन्हें कोई जगह नहीं मिली। अत: उन्हें एक भेड़शाला में अपने पहले बालक को जन्म देना पड़ा। सबसे पहले इस दैवीय बालक का दर्शन करने वाले गरीब दीन चरवाहे थे, जो रात के समय भेड़, बकरियों की रखवाली कर रहे थे। अपने जन्म के कुछ ही महीनों के बाद उसे लेकर उसके माता-पिता को मिस्र देश में शरण लेनी पड़ी, क्योंकि राजा हेरोद इस बालक को राजा समझकर मार डालना चाहता था। हजारों लोगों को आज भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजरना पड़ रहा है। ऐसा लगता है, मानो ईश्वर उनसे दूर है, उनके न कोई हितैषी हैं, न मुक्तिदाता, न सुध लेने वाला, न ही रखवारा। यदि है तो केवल एक विकट परिस्थिति का डर और साया।
क्रिसमस एक ऐसा ईश्वर प्रदत्त अवसर है, जब हम इस कोरोना महामारी से पीड़ित समाज के पीड़ित लोगों के प्रति एकात्मकता दिखाएं। न सिर्फ दिखावे के धार्मिक बनें, अपितु अपने भले कर्मों से दिखाएं कि हम वास्तव में भाई-बहनों की तरह एक दूसरे के साथ संवेदनशील व्यवहार कर सकते हैं।
कोविड महामारी ने हमें एक-दूसरे से उचित दूरी बनाएं रखना सिखाया। क्रिसमस आचरण और उल्लास के समय इस दूसरी को अवश्य बनाएं रखे, किंतु हमारे बीच की नफरत, जातिवाद, ऊंच-नीच का भेदभाव, अमीर और गरीब के बीच की अनदेखी और रूखेपन की दीवारों को तोड़ डालें। इस विकट परिस्थितिायों में मास्क अवश्य पहनें, किंतु ईश्वर और उसके लोगों के सामने घमंड, अहंकार, स्वार्थ, निरादर, तिरस्कार के पर्दे हटाएं। शारीरिक दूरी हो लेकिन अपने दिलों को एक-दूसरे के पास लायें। हमारे क्रिसमस आचरण व उल्लास को गिरजाघर और अपने घरों में आमोद-प्रमोद मनाने तक सीमित न रखें, वरन नर-नारायण की मूलभूत आवश्यकताओं को पहचानकर उदारता, स्नेह, भाईचारा व क्षमा की भावना को अमलीजामा पहनाएं।
फादर हैराल्ड डीकुन्हा
पैरिश प्रीस्ट, सेंट अल्फांसिस कैथीड्रल, बरेली कैंट
एवं
मैनेजर-बिशप कॉनराड स्कूल, बरेली