शैक्षिक गुणवत्ता में नींव का पत्थर- ईसीसीई यानी शिशु शिक्षा एवं देखभाल

-डॉ. अनिल चौबे
पूरे देश में शैक्षिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों, शिक्षाविदों एवं शिक्षकों के विभिन्न मंचों पर शिक्षा नीति 2020 पर चर्चाएं एवं वार्ताएं की जा रही हैं। यह आवश्यक भी है, क्योंकि किसी भी देश की शिक्षा नीति उस देश की तात्कालिक आवश्यकताओं तक सीमित न रहकर आगे आने वाली पीढ़ी के भविष्य की दशा एवं दिशा निर्धारित करने वाली होती है। यदि हम प्रारंभिक शिक्षा को ध्यान में रखकर समीक्षा करें तो हम यह पाते हैं कि स्वतंत्रता के पश्चात शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न आयोगों एवं समितियों द्वारा समय-समय पर 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों को स्वास्थ्य, पोषण एवं सीखने की आवश्यकता पर बल दिया। बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण एवं सीखने के इस कार्य के लिए पूरी दृढ़ता के साथ करने को राष्ट्रीय स्तर पर एक मंत्रालय एवं विभाग एकीकृत बाल विकास योजना की स्थापना भी की गयी। राज्य स्तर पर इस कार्य को आंगनबाड़ी या बाल विकास विभाग के नाम से जाना जाता है।

मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों का मानना है कि बच्चों के मस्तिष्क का 80 प्रतिशत विकास 3 से 8 वर्ष की आयु में होता है। इस आयु में यदि हम बच्चों को सीखने के क्रिया कलाप करने के तथा पोषण के पूरे मौके नहीं देते तो न केवल उनकी प्रारंभिक शिक्षा बल्कि पूरा जीवन ही कमजोर रह जाता है। वे न तो शारीरिक रूप से पुष्ट होते हैं, न ही मानसिक रूप से। ईसीसीई अर्थात शिशु शिक्षा एवं देखभाल मतलब हम यह मानते हैं कि शिशु अवस्था में देखभाल अर्थात पोषण एवं शिक्षा दोनों की ही बराबर आवश्यकता है। शिक्षा का अभिप्राय यहां पढ़ना एवं लिखना नहीं, बल्कि क्रियाकलाप, व्यवहार, सुनना एवं बोलना सम्मिलित है।

पहले के समय में प्लेस्कूल अथवा 3 से 6 वर्ष की शिक्षा की कोई आवश्यकता नहीं थी। अर्थात सभी परिवार संयुक्त परिवार होते थे। बातें करने के लिये, कहानियां सुनाने के लिये दादा-दादी, चाचा-चाची तथा साथ खेलने के लिये उनके छोटे हम उम्र बच्चे जो एक साथ रहते, खेलते एवं खाते थे, जिससे बच्चों के पोषण एवं सीखने की कोई समस्या नहीं रहती थी। आज के समय में जबकि अधिकतम परिवार एकांकी हैं। अधिकतर माता एवं पिता, दोनों ही कार्य करने वाले होते हैं, जिससे वे बच्चों पर इस आयु में पूरा ध्यान नहीं दे पाते, जिसमें उनको सर्वाधिक आवश्यकता है। ऐसी स्थिति में सीखने एवं पोषण के लिए संस्थानों की आवश्यकता पड़ती है।

आंकड़ों पर प्रकाश डालें तो पाते हैं कि उत्तर प्रदेश में 3-6 वर्ष की आयु के कुल बच्चों की संख्या 1.82 करोड़ है। इनमें 36 प्रतिशत आंगनबाडी केन्द्रों में नामांकित है। यह बात अलग है कि उनमें से वास्तविकता में कितने बच्चे आंगनबाडी केन्द्रों तक भौतिक रूप से पहुंचते हैं? केवल 7 प्रतिशत बच्चे प्लेस्कूलों में नामांकित होकर पूर्व प्राथमिक शिक्षा की औपचारिकता पूर्ण करते हैं, क्योंकि वहां वे खेल-खेल में सीखने से पूर्णतयः वंचित रहकर किताबों-कापियों की उलझन में ही उलझे रहते हैं। 57 प्रतिशत बच्चे अर्थात लगभग 1 करोड़ बच्चे सीधे कक्षा 1 में प्रवेश लेते हैं, जिससे उनकी प्री स्कूलिंग (विद्यालय पूर्व शिक्षा) नही हो पाती। विद्यालय से जुड़ाव नियमित नहीं हो पाता। जबकि कक्षा 1 से हम पढ़ने-लिखने एवं गणित सीखने की प्रक्रिया आरम्भ करते हैं। ऐसे में, ईसीसीई सीखने की नींव है, जिसका उद्देश्य विद्यालय जाने से पूर्व खेल-खेल में सीखना, आपस में समायोजन, पोषण एवं देखभाल पूर्ण रूप से सुनिश्चित कराना है। बच्चे एक दूसरे से अनुभव प्राप्त करते हुए निरन्तर सीखते रहते हैं। ईसीसीई का उद्देश्य स्कूली शिक्षा की तैयारी के साथ साथ गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए आधार प्रदान करना भी है। नई शिक्षा नीति में इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए आंगनबाडी केन्द्रों का उच्चीकरण करने, बाल वाटिका विकसित करने, देखभाल एवं पोषण युक्त भोजन एवं स्वास्थ्य तथा आंगनबाड़ी केन्द्रों की कार्यकत्रियों के बेहतर प्रशिक्षण के लिए रिसोर्स केन्द्र विकसित करने की संस्तुति की गयी है।

नई शिक्षा नीति में प्रत्येक 3-6 वर्ष के बच्चे को शिशु शिक्षा एवं देखभाल (पोषण) पूर्ण करने के लिए उन्हें प्रारंभिक शिक्षा से जोड़ा गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की इस पहल से देश के 3 से 6 वर्ष वर्ग के सभी बच्चों को पूर्व प्राथमिक शिक्षा अर्थात प्री-स्कूलिंग या स्कूल पूर्व तैयारी का अवसर मिलेगा। उसके साथ-साथ पोषण युक्त भोजन एवं स्वास्थ्य सुविधाएं भी प्रदान की जायंेगी। यह कार्य यदि पूर्ण रूप से सम्भव हो सका तो निश्चित रूप से नई शिक्षा नीति का यह कदम प्रारंभिक शिक्षा में नींव का पत्थर होगा।

नई शिक्षा नीति में आंगनबाड़ी केन्द्रों को विद्यालयों से जोडने एवं समन्वय करने से निश्चित रूप से अभिभावक उन सभी 3-6 वर्ष वर्ग के बच्चों के नामांकन बालवाटिका में पूरे विश्वास से करा सकेंगे, जो प्राथमिक शिक्षा के लिए बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों में नांमाकित कराते हैं। इस पहल से लगभग सभी बच्चों का शारीरिक एवं भौतिक विकास, सांस्कृतिक एवं समाजिक विकास सम्भव हो सकेगा। ऐसे में, प्राथमिक शिक्षा से ईसीसीई को जोड़ना न केवल स्कूली शिक्षा से जुड़ाव के लिए बच्चों के लिए हितकारी है बल्कि यह परियोजना प्रारंभिक शिक्षा में शैक्षिक गुणवत्ता की समस्या को पूरी तरह से समाप्त करने में सक्षम होगी। नई शिक्षा नीति 2020 की यह पहल निश्चित रूप से स्वागत योग्य है। विशेषकर उत्तर प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में, परन्तु कुछ चुनौतियां भी हैं। आंगनबाड़ी केन्द्रों में इतनी बडी संख्या में नामांकित होने के बावजूद बच्चों की वास्तविक उपस्थिति लगभग नगण्य रहती है। बच्चों को व्यवाहरिक रूप से न तो खेल की सुविधा है, न सीखने की और न पोषण की। सभी बच्चों के नामांकन सुनिश्चित करते हुए उन्हें स्वास्थ, पोषण एवं खेल-खेल में सीखने के अवसर उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है। हम कितना सफल हो पायेंगे? यह तो समय ही बता सकेगा। यदि 3 वर्ष की आयु से ही शिक्षा सीधे प्राथमिक विद्यालयों से जोड़ी जाती तो उचित रहता, अच्छे परिणाम मिलने की सम्भावनाएं और अधिक बढ़ जाती।

अनिल चौबे

लेखक- राज्य संदर्भ समूह
मिशन प्रेरणा- उत्तर प्रदेश के सदस्य हैं और शिशु शिक्षा एवं देखभाल कोर्स में एनसीईआरटी,नई दिल्ली से प्रशिक्षित हैं।

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