भारत को ‘सर्विस कंज्यूमर’ से ‘सर्विस प्रोवाइडर’ में बदल सकती हैं भारतीय भाषाएं

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केट्स वी.जी. वझे महाविद्यालय के आयोजन में बोले आईआईएमसी के महानिदेशक
नई दिल्ली। ”अगर हम भारतीय भाषाओं के संख्या बल को सेवा प्राप्तकर्ता से सेवा प्रदाता में तब्दील कर दें, तो भारत जितनी बड़ी तकनीकी शक्ति आज है, उससे कई गुना बड़ी शक्ति बन सकता है।” यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी  ने  केट्स वी.जी. वझे महाविद्यालय, हिंदी साहित्य परिषद  एवं  हिंदी विभागद्वारा आयोजित ‘हिंदी दिवस समारोह’  के अवसर पर व्यक्त किए।हिंदी की तकनीकी शक्ति पर चर्चा करते हुए प्रो. द्विवेदी  ने कहा कि संख्या बल हमारी सबसे बड़ी ताकत है, इसलिए तकनीकें बनती रहेंगी और हिंदी समृद्ध होती रहेगी। लेकिन खुद को महज बाजार मानकर बैठे रहना और विकास का काम दूसरों पर छोड़ देना आदर्श स्थिति नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर सभी भाषाओं की बात करें, तो वर्ष 2030 तक भारत में लगभग एक अरब लोग इंटरनेट से जुड़े होंगे। ये यूजर्स मुख्य रूप से अंग्रेजी न बोलने वाले, मोबाइल फोन यूजर्स और विकसित ग्रामीण क्षेत्रों से होंगे, जो ऑनलाइन कंटेंट के लिए भुगतान करने को भी तैयार होंगे।प्रो. द्विवेदी ने कहा कि हमें भारत को सिर्फ बीपीओ और आउटसोर्सिंग के जरिए तकनीकी विश्व शक्ति नहीं बनाना है, बल्कि उसे एक ज्ञान समाज में बदलना है। तकनीक, भारत में सामाजिक परिवर्तनों तथा आर्थिक विकास का निरंतर चलने वाला जरिया बन सकती है, और भाषाओं की इसमें बड़ी भूमिका होने वाली है। प्रो. द्विवेदी के अनुसार आने वाला समय हिंदी का है। आज के समय में न तो हिंदी की सामग्री की कमी है और न ही पाठकों की। हिंदी का एक मजबूत पक्ष यह है कि यह अर्थव्यवस्था की भाषा बन चुकी है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी उपयोगिता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। कार्यक्रम में हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. अर्चना दुबे, महाविद्याल के प्राचार्य डॉ. बी.बी. शर्मा, डॉ. प्रीता नीलेश, सी.ए. विद्याधर जोशी,  माधुरी बाजपेयी, जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. श्याम चौटानी,  अजित राऊत,  भरत भेरे  एवं गोपीनाथ जाधव के साथ महाविद्यालय के अन्य शिक्षक भी शामिल हुए।
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