-नवनीत मिश्रा (पत्रकार, नई दिल्ली)
पिछले दिनों लोकसभा स्पीकर ओम बिरला की पुत्री के आईएएस होने की खबर वायरल हुई। हिंदी छोड़िए, अंग्रेजी मीडिया ने भी अंजलि के आईएएस होने की खबरें जारी कर दीं। जबकि वह आईएएस नहीं बनी हैं। दरअसल, सिविल सर्विसेज में सफल हुआ हर व्यक्ति आईएएस नहीं हो जाता, इसलिए सिविल सर्विसेज का रिजल्ट आने पर सफल उम्मीदवार को आईएएस घोषित नहीं किया जाना चाहिए।
अंजलि बिरला के मामले में जान लें कि उनका नाम सिविल सर्विसेज परीक्षा 2019 की घोषित हुई रिजर्व लिस्ट में आया है। रिजर्व लिस्ट तब बनती है, जब पहली लिस्ट से वैंकेसी पूरी नहीं होती। इस लिस्ट में मेरिट में आने से छूटे अभ्यर्थियों को मौका मिलता है।
2019 की जिस सिविल सर्विसेज परीक्षा में अंजलि सफल हुई हैं, उसका परिणाम पिछले साल 4 अगस्त में आया था, तब कुल 829 सफल उम्मीदवारों की पहली सूची जारी हुई थी। अब वैंकेसी के हिसाब से संघ लोक सेवा आयोग ने 89 और सफल अभ्यर्थियों की सूची जारी की है, जिसमें अंजलि 67 वें नंबर पर हैं। अंजलि की रैंक को देखते हुए लगता है कि उन्हें आईएएस, आईपीएस और आईआरएस भी नहीं बल्कि ग्रुप बी की केंद्रीय सेवाओं में ही मौका मिलने की संभावना है। यहां तक कि पहली लिस्ट के 829 में से आधे से भी ज्यादा अभ्यर्थी आईएएएस, आईपीएस छोड़िए, आईआरएस भी नहीं बन पाए होंगे। ऐसे में, दूसरी लिस्ट वाले आईएएस कहां से बन पाएंगे? लेकिन अंग्रेजी से लेकर हिंदी मीडिया ने अंजलि को तत्काल प्रभाव से आईएएस घोषित कर दिया। नतीजतन, सब उनको आईएएस बनने की बधाई देने लगे। यह सिर्फ अंजलि के ही मामले में नहीं होता, हर साल मीडिया इसी तरह भेड़चाल का शिकार होती है। अंजलि को क्या काडर मिलेगा? क्या नहीं? यह उनकी मेरिट और कई मानकों के हिसाब से तय होगा। उन्हें आईएएस काडर ही मिलेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
जान लीजिए कि हर साल वैकेंसी के हिसाब से सात से नौ सौ तक अभ्यर्थी सिविल सर्विसेज की परीक्षा में सफल होते हैं। लेकिन, सभी आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, आईआरएस ही नहीं बन जाते। सिविल सर्विसेज परीक्षा के माध्यम से इन चार प्रमुख कैडर के अतिरिक्त ग्रुप ए और ग्रुप बी की दो दर्जन सेवाओं के लिए भी चयन होता है।
कहने का मतलब है कि सीएसई में सफलता अलग बात है और आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, आईआरएस इत्यादि बनना अलग बात है। प्रारंभिक, मुख्य और साक्षात्कार कुल मिलाकर तीन चरणों में संघ लोक सेवा आयोग की ओर से होने वाली सिविल सर्विसेज परीक्षा में हर साल वैकेंसी के हिसाब से अभ्यर्थी सफल होते हैं। अभ्यर्थियों की रैंक और उनके द्वारा डिटेल्ड एप्लीकेशन फॉर्म में बताई गई प्राथमिकता सहित कई मानकों के आधार पर कैडर का आवंटन होता है। मेरिट के आधार पर कोई भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएएस) में जाता है तो कोई भारतीय विदेश सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय वन सेवा, भारतीय राजस्व सेवा, भारतीय रेल सेवा आदि में जाता है।
और हां, सिविल सर्विसेज में सफलता अपने आप में बड़ी बात है। इस प्रतिष्ठित परीक्षा से अलग-अलग सेवाओं में लोग चुने जाते हैं। रैंक महज कुछ अंकों का खेल होता है बस। कोई आईएएस बन जाता है तो कोई कुछ और। लेकिन कुछ और बनने वाला आईएएस से कतई कम नहीं होता। लेकिन बिना आईएएस हुए किसी को आईएएस समझना, क्या गलत नहीं है? सिविल सर्विसेज को आईएएस का पर्याय मान लेना भी गलत है। हालांकि दूसरा पहलू यह भी है कि आईएएस होना ही सर्वोत्कृष्ट होने की गारंटी नहीं है। कुछ अंकों से चूककर आईपीएस या आईआरएस बनने वाला भी बराबर योग्यता का होता है। ऐसे में, सिविल सर्विसेज को आईएएस होने के नजरिए से देखना बंद करना चाहिए। सिविल सर्विसेज की सभी सेवाओं का बराबर सम्मान करना चाहिए। उम्मीद है कि अब जब सिविल सर्विसेज का रिजल्ट आएगा तो फिर उसमें सफल हर किसी को आईएएस समझने के बजाय संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सर्विसेज परीक्षा में कामयाब अभ्यर्थी माना जाना जाए। उसको रैंक के हिसाब से बाद में कैडर मिलेगा। सिविल सर्विसेज की परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले को पहले से ही आईएएस घोषित कर देना या मान लेना उचित नहीं है।