तीन विश्वविद्यालयों के कुलपति और बरेली कालेज के प्राचार्य रहे शिक्षाविद प्रोफेसर आरपी सिंह का मानना है कि स्नातक और स्नातकोत्तर कक्षाओं में प्रवेश की प्रक्रिया जटिल नहीं होनी चाहिए। उनका कहना है कि प्रवेश प्रक्रिया पारदर्शी होने के साथ ही सहज और सरल होनी चाहिए। उन्होंने प्रवेश प्रक्रिया को समयबद्ध पूर्ण करने का सुझाव भी दिया है, ताकि नया शैक्षिक सत्र समय से प्रारम्भ हो सके। आइये जानते हैं प्रोफेसर आरपी सिंह के सुझाव-
इन दिनों उत्तर प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों की ओर से संबद्ध कॉलेजों में स्नातक और स्नातकोत्तर कक्षाओं में प्रवेश की प्रक्रिया चल रही है। बीए, बीकॉम और बीएससी प्रथम वर्ष के अलावा एमकॉम, एमए और एमएससी प्रथम वर्ष में प्रवेश होने हैं। राजकीय और अनुदानित कॉलेजों में प्रवेश के लिए छात्र-छात्राओं में होड़ रहती है लेकिन कुछ को छोड़कर अधिकांश निजी कॉलेजों में प्रवेश के लिए छात्र-छात्राओं में उत्साह नहीं रहता। नतीजतन, इन कॉलेजों में कई सीटें खाली रह जाती हैं।
बरेली के एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय की ओर से सम्बद्ध कॉलेजों में प्रवेश के लिए मेरिट प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है। इसके लिए छात्र-छात्राओं से विश्वविद्यालय के पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन मांगे गए हैं। इसमें प्रवेश चाहने वाले कॉलेजों के विकल्प छात्र-छात्राओं को भरने होते हैं। पंजीकरण शुल्क 150 रुपए निर्धारित किया गया है। जिन कॉलेज के विकल्प आवेदक भरेंगे, वे कॉलेज पंजीकरण आवेदन करने वाले छात्र-छात्राओं की मेरिट के आधार पर एडमिशन काउंसलिंग कराकर प्रवेश करेंगे।
इस प्रक्रिया में होता यह है कि अधिकांश छात्र-छात्राएं बरेली कॉलेज जैसे कॉलेजों को वरीयता में लेते हैं और मेरिट में अपना नाम आने का इंतजार करते हैं। जहां प्रवेश के लिए ज्यादा मारामारी होती है, उन कॉलेजों को बार-बार मेरिट निकालनी पड़ती है। बरेली कॉलेज का ही उदाहरण लें तो पहली मेरिट में आए कई विद्यार्थी प्रवेश न लेते हैं तो उन रिक्त स्थानों के लिए फिर मेरिट जारी करनी होती है। इससे प्रवेश प्रक्रिया लंबी चलती है।
अब बारी आती है निजी कॉलेजों की। उनमें तब प्रवेश के लिए विद्यार्थी आते हैं, जब उन्हें नामी कॉलजों में प्रवेश नहीं मिल पाता है, तब तक निजी कॉलेजों को मेरिट जारी करने की औपचारिकता करती रहनी पड़ती है। चूंकि शुरुआत में निजी कॉलेजों के विकल्प विद्यार्थी भरते नहीं हैं, इसलिए बाद में यहां तक कि सितम्बर माह के अंत तक अपने यहां की खाली सीटें भरने के लिए निजी कॉलेजों को विश्वविद्यालय प्रशासन से ‘मान-मनुहार’ करके पंजीकरण की तिथि बढ़वानी पड़ती है, फिर भी कई निजी कॉलेजों में आधी सीटें भी नहीं भर पातीं। इन तरह नया सत्र कभी-कभी तो अक्टूबर माह तक पटरी पर आ पाता है यानी पढ़ाई प्रभावित होती है। जो पढ़ाई जुलाई में शुरू हो जानी चाहिए, वह तीन-साढ़े तीन माह तक लेट हो जाती है।
क्या कहते हैं प्रोफेसर आरपी सिंह-
तीन राज्य विश्वविद्यालय के कुलपति और बरेली कॉलेज के प्राचार्य रहे प्रोफेसर आरपी सिंह के प्रवेश प्रक्रिया में सुधार के लिए कुछ सुझाव हैं। वह कहते हैं कि स्नातक (बीए, बीकॉम, बीएससी) और स्नातकोत्तर (एमए, एमकॉम और एमएससी) में प्रवेश के लिए विश्वविद्यालयों को मेरिट या प्रवेश परीक्षा से प्रवेश लेने की प्रक्रिया कालेजों की मर्जी पर छोड़ देना चाहिए। ऐसा प्रावधान बरेली कॉलेज जैसे अनुदानित कॉलेजों के अलावा राजकीय डिग्री कॉलजों के लिए करना चाहिए, जहां प्रवेश के लिए मारामारी रहती है। लेकिन निजी कॉलेजों में मेरिट से प्रवेश का प्रावधान पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए। इन कॉलेजों को ‘सीटें भरने से पहले आओ-पहले प्रवेश पाओ’ के नियम की छूट दे देनी चाहिए। इससे होगा यह कि निजी कॉलेजों में बड़ी तदाद में सीटें खाली नहीं रहेंगी और दूसरा बार-बार मेरिट निकालने से लंबी चलने वाली प्रवेश प्रक्रिया से छुटकारा मिल जाएगा। इसका लाभ यह भी होगा कि शैक्षिक सत्र लेट नहीं होगा, वहीं जिसे प्रवेश लेना है, वह हर हाल में 31 जुलाई तक ले लेगा तो पढ़ाई समय से शुरू हो सकेगी।
बच्चों को ऑनलाइन आवेदन और पंजीकरण शुल्क से मुक्ति मिले-
प्रोफेसर आरपी सिंह का सुझाव है कि निजी डिग्री कॉलजों में प्रवेश के लिए ऑनलाइन पंजीकरण की प्रक्रिया उचित नहीं है, क्योंकि दूर दराज ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे आज भी ऑनलाइन पंजीकरण नहीं कर पाते। वहीं ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया में बच्चों से 150 रुपए का शुल्क लेना भी उचित नहीं है। इससे गरीब परिवारों के बच्चों पर आर्थिक बोझ पड़ता है। ऑनलाइन पंजीकरण का प्रावधान प्रवेश प्रक्रिया को जटिल बनाता है।
प्रोफेशनल कोर्सों में ही हो मेरिट या इंट्रेंस टेस्ट-
प्रोफेसर आरपी सिंह का कहना है कि मेरिट या इंट्रेंस टेस्ट की प्रक्रिया सिर्फ प्रोफेशनल कोर्सों में प्रवेश के लिए अपनाई जानी चाहिए।
निजी कॉलेजों की चिंता करें विश्वविद्यालय और शासन-
प्रोफेसर आरपी सिंह कहते हैं कि शासन और विश्वविद्यालय को यह नहीं भूलना चाहिए कि शिक्षा के विकास में निजी कॉलेजों की भूमिका अहम है, क्योंकि राजकीय या अनुदानित कॉलेज तो सारे विद्यार्थियों को प्रवेश दे नहीं सकते। कई ऐसे इलाके हैं, जहां दूर-दूर तक राजकीय और अनुदानित कॉलेज नहीं हैं, वहां निजी कॉलेजों की भूमिका ही अहम होती है, इसलिए सरकार और विश्वविद्यालयों की जिम्मेदारी है कि निजी कॉलजों की पूरी चिंता करें और इनके हितों के लिए भी प्रोत्साहन का माहौल बनाएं।