सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्मदिवस पर सम्पूर्ण देश में शिक्षक दिवस मनाया जाता हैं एवं विश्व के सौ देशों मे भी विभिन्न तिथियों पर शिक्षक दिवस आयोजित किया जाता है।इस महत्वपूर्ण अवसर पर मेरे द्वारा रचित निम्न पंत्तियां-
शिक्षक है ज्ञान विज्ञान का दर्शन,
मन वुद्धि आत्मा का चिन्तन।
देते है मान मर्यादा रूपी कवच,
प्रस्फुटित करते है विनयशील सद्भाव।
मित्रवत् देते है सनमार्ग हमें प्रतिफल,
शिक्षक है ज्ञान विज्ञान का दर्शन।
शिक्षक का वास्तविक स्वरूप व वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस दिवस पर चिन्तन करने की आवश्यकता है, शिक्षक दिवस अर्थात ज्ञान को देने वाले गुरू के प्रति सम्मान प्रदान करने का विशेष दिवस है। यह दिवस शिक्षकों के लिये महत्त्वपूर्ण होने के साथ शिक्षा को जन सामान्य तक पहुंचाने व राष्ट को शिक्षित करने का शिक्षकों के प्रति दायित्व भी है।
शिक्षक समाज का दर्पण है ,शिक्षक अपने विद्यार्थियों को वाल्यावस्था से जो कुछ भी सिखाते व पढाते है वह ही समाज अनुकरण करता है,उसी विधा से समाज मे संस्कार व संस्कृति का प्रादुर्भाव भी होजाता है अर्थात मानवीय मूल्यों के उत्थान व पतन में शिक्षक एवं शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है ,इसलिए महर्षि दयानंद ने कहा कि *शिक्षक व शिक्षा को भारतीयता की परिधि में शिक्षा को समाज के लिये समर्पित करना चाहिए, तभी हम राष्ट भावों से ओतप्रोत कर पायेगें।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक और शिक्षक थे और शिक्षा में उनका काफी लगाव था, इसलिए सम्पूर्ण भारत में सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा करने वाले छात्रों को पुरस्कार दिया जाता है. कोई भी गुरु अर्थात शिक्षक के बिना सही रास्तों पर नहीं चला जा सकता है. वह मार्गदर्शन करते है. तभी तो शिक्षक छात्रों को अपने नियमों में बांधकर श्रेष्ठ इंसान बनाते हैं और सत्य मार्ग प्रशस्त करते रहते है. इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि जन्म दाता से बढकर महत्व शिक्षक का होता है क्योंकि ज्ञान ही इंसान को व्यक्ति बनाता है, जीने योग्य जीवन देता हैं.इसी लिये सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने कहा था- शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिये तैयार करें।
देश में शिक्षा का चुनौतीपूर्ण समय गुजर रहा है,राष्ट भावों से विमुख होकर शिक्षा के व्यवासायिकरण पर शिक्षण संस्थायें केन्द्रित हो रहीं है, भारतीय भाषा सस्कृति व इस देश के ज्ञान विज्ञान से छात्र छात्रायें विमुख होती दिखाई दे रहे हैं। वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रन्थ एवं भारतीयता से भरा हुए अथाह ज्ञान सागर की संनिकटता का लाभ नहीं मिल पा रहा है,क्योंकि वर्तमान शिक्षा निति ने व्यासायकरण की मानसिकता के रहते मूल भावना से विमुक्त हो गए हैं।
शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर शिक्षकों का दायित्व है कि शिक्षा में भारतीयता का समावेश ही भारतीय कहलाने व मूलभूत शिक्षा का ज्ञान प्राप्त हो तभी शिक्षक दिवस की सफलता सार्थक हो पाएगी।
-डॉ. श्वेत केतु शर्मा
(लेखक- हिन्दी सलाहकार समिति भारत सरकार के पूर्व सदस्य हैं।)